ब्लॉग

गुरु, लापरवाही बहुत बुरी चीज़ है। किसी महान व्यक्ति ने कहा है कि सावधानी हटी दुघर्टना घटी पर इसके बावजूद यार जो आनंद है ना बेपरवाह होने का, कहा ही बताया जाए। 

मुझको कभी लगा नही की कोई ख़ास ऐसा व्यक्ति होगा जो मेरे ब्लॉग को इस नज़रिये से पढ़ता होगा कि उसको गए समझ आ जाए कि मेरे लिखने के साथ साथ मैं कितना बदल गया हूँ और अगर ऊपर से यह कह दे कि ब्लॉग का इंतजार रहता है तो सोने पर सुहागा हो गया। 

मुझे कभी ऐसा लगा नही क्योंकि ऐसा कहा भी गया कि पढ़ ही कौन रहा है और साथ ही में वो आईडिया जैमिंग वाले दिन भी लद गए। 

सही दिन थे यार वो आईडिया जैमिंग वाले, किसी व्यक्ति विशेष को क्रेडिट नही है यंहा बस वो कुर्सियों पर बेपरवाही के कूल्हे टीका कर जो आवारापन का रियाज़ होता था, गुरु क्या ही बताया जाए.

खैर बेपरवाही और ब्लॉग की बात सिर्फ इसलिए कि लगभग 3-4 साल पहले लिखते लिखते यूँ ही आईडिया आया कि कविता और यह अधमरे लाइफ स्टाइल काइंड ऑफ ब्लॉग को अलग कर दिए जाएं। फिर क्या था, एक तरफ अवसाद से भरी नज़्में डल रही थी और एक तरफ अंग्रेजी में लबर लबर बुद्धिजीवी बनने की कोशिशें। 

दो नावों पर पैर रखने का नतीज़ा हुआ यह कि लिखा कम सोचा ज़्यादा, महसूस बहुत कुछ हुआ लेकिन शब्द साथ छोड़ कर जाने लगे तो मोबाइल में सेव होते ड्राफ्ट्स रेपटेटिव लगने लगे। और फिर कभी महीने में एक बार इधर अपडेट हुआ,  कुछ और कभी उधर। 

कोई खास मलाल है नही, पर कई बार शब्दों के तलाश में कई कहानियां अपनी मंज़िल नही पाती, और फिर वो कहानियां भूत बनकर सताने लगती हैं और ऐसी कई कहानियां अब सताने लगी हैं जो कि है लापरवाही का नतीज़ा। 

अब कोई निक फ्यूरी तो है नही तो खुद ही हिम्मत आदत को फिर से असेम्बल करना पड़ेगा। और जो जँहा जिस जगह पर चल रहा है वैसा चलने देते हैं, हिंदी का यंही रहेगा, ब्लॉग्स्पॉट पर अंग्रेजी की जद्दोजहद उधर, वर्डप्रेस पर।

हिंदी में ब्लॉग लिखने में आनंद तो आ रहा है पर द्विभाषी होना भी अपने मे ही अलग चैलेन्ज है।

जयेन्द्र दुबे


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