बकवास बातें
मैं बहुत लंबे समय से लिख रहा हूँ,
कभी भी एक सेकंड के लिए भी, और एक सेंटेंस के लिए भी,
ऐसा नहीं लगा कि किसी और को अच्छी लग जाये ये बात, ये ब्लॉग, ये कहानी, ये कविता।
मैं ख़ुद के लिए लिखता रहा।
प्यार बहुत मिला—जितना मैं सोच भी नहीं सकता था उतना।
अपनों से, अनजानों से, उनसे जिन्होंने शायद सिर्फ़ एक ही बार पढ़ा…
और उनसे भी, जो ढूँढते हुए वापस आए—“क्या लिख रहा है आजकल?”
कई ने चिंता भी जताई—
“कहीं डिप्रेशन तो नहीं हो गया?”
मैंने पूछा क्यों?
बोले—“भाई, बहुत दुख झलक रहा है।”
तब ख़ुद से पूछा—
“सही में उदास हो गया हूँ क्या बे?”
जवाब मिला—
“नहीं बे, कभी-कभी उल्टी करने का मन करता है तो कर देता हूँ। कोई ख़ास कारण नहीं होता।”
और भाई,
मेरा व्यक्तिगत रूप से यह मानना है—
कि आदमी को बवासीर हो जाये लेकिन डिप्रेशन नहीं।
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