रक़ीब
ऐसा नही है कि मेरे बाद कोई और नही आएगा,
बेशक़ आएगा,
हाथ चूमेगा, तुम्हारे तिल गिनाएगा,
पर तुम्हारे रवय्ये से इश्क़ न कर पाएगा।।
मुझे तुम भले ही कह दो,
कि बिन तुम्हारे अब सब ज्यादा अच्छा है,
पर उस रक़ीब को कैसे यकीन दिलाओगी,
जो तुम्हारी हर कहानी में एक किरदार को उलझा पाएगा।।
हो सकता है तुमको वो रोज़ सुने,
पर तुम्हारी रंगों, फूलों, तितलियों में उलझी बातें समझने को,
कँहा वो समझ लाएगा,
ऐसा नही है कि मेरे बाद कोई और नही आएगा।
© जयेन्द्र दुबे
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