तलाक
चलो, अब जो अलग हो ही रहे हैं,
तो सब कुछ आधा बांट लेते हैं,
मेरी आधी खुशियां तुम रख लो,
और मैं रख लेता हूँ तुम्हारा वो काज़ल,
जो तुमको सबसे ज्यादा पसंद है,
तुम रख लो मेरी आधी कविताएँ,
और मैं रख लेता हूँ अधूरे किस्से,
तुम चाहो तो बिस्तर के सिरहाने टंगा अपना
दुप्पटा भी ले जा सकती हो,
पर आईने पे अपनी बिंदी छोड़े जाना,
रख लेना आधा वो सब कुछ जो मुझमे है,
पर अपनी थोड़ी से फिक्र भी छोड़े जाना,
अज़ीब सी लगेंगी तुमको मेरी ये बातें,
पर यूँ गैरों के बीच ख़त्म होते रिश्ते सी अज़ीब तो नही होगी,
तुम ले जाना सब कुछ जिससे ये घर सजाया था,
में रख लूंगा वो तस्वीरें जिनसे बातें होंगी।
© जयेन्द्र दुबे
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