जानू
अगर हमारी भी एक कहानी होती,
तो शायद हमारे हिस्से में भी
संग कुछ तस्वीरे होती,
मेरे पास कुछ किस्से हैं तुम्हारे,
पर उनमें हम साथ नही हैं,
उनमे सिर्फ वो यादें हैं जिसमे मेरे सारे काश क़ैद हैं,
काश कि, बरसात के हर मौसम की शाम हमने साथ गुज़ारी होती,
काश कि,आख़िरी मुलाक़ात की बात खत्म कर ली होती,
काश की एक तस्वीर हमारी साथ होती।
तुमने ये कब ही कहा था कि मुमकिन नही है,
सफ़र, साथ, रिश्ता,
तो क्यों ये काश, स्कूल की बस्ते में ही बंद रह गए,
कहानी वंही क्यों खत्म हो गयी,
क्या तुम भी दुनिया के किसी कोने से ये बात सोचती होगी?
सोचती होगी कि,
काश हमारे हिस्से में भी
संग कुछ तस्वीरे होती।
अब लगता है कि इन्ही काश पर उम्र गुजरेगी,
काश कि जानू तक़दीर हमारी अलग होती।।
© जयेंद्र दुबे
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