एक चाँद के हारने की कहानी

एक चाँद के हारने की कहानी है ये,
क्यों हारा? 
चलो पता करते हैं,
आकाश बड़ा था, 
साथ के सितारे कम।
कभी कभार कोई अपने खाली समय में,
जगमगाते चाँद से इश्क़ करने को,
आ जाता था,
कविताएं लिखता,
कहानियाँ सुनाता, 
और सुबह अपनी बस्ती को निकल जाता।
जब अंधेरा किसी शून्य की तरह,
रोशनी को निगल जाता,
तो खुद की चांदनी उसे खुद जलानी होती। 
पर सारे आशिक़ कहते,
की ये तो सूरज की रोशनी का प्रतिबिम्ब है,
इसमे खुदकी चमक कंहा,
वो दाग देखो,
वो इसका अपना है।
इस दाग और फैली रोशनी के बेनूरी की कहानी ही,
उस चाँद के हारने की कहानी है।। 

ये तुम्हारी संवेदना का मरा होना, 
और तुम्हारी अस्वीकृति,
जाती, रंगभेद और जाने किन नफरत के ईंटो से बनी हुई, 
उदासीनता की इमारत खड़ी करती हैं,
जिसमे करुणा की कोई खिड़की भी नही,
यही वो ग्रहण है,
जिसने चाँद को छुपा दिया है,
और यही,
उस चाँद के हारने की कहानी है।।

© Jayendra Dubey 

P.S. Sushant's news came as a shock. Wrote this piece some one and a half month ago, but didn't feel like sharing it because of all the things that were/ are still going on. Something somewhere is very wrong. Sharing this poem today with  prayers that May his soul find peace and justice. You'll be missed. 

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