इश्तेहार



बंद दरवाजे के पीछे,
तिनका तिनका घुट रही है ज़िन्दगी,
इश्तहारों में कहते हो,
की सिमट के बच रही है ज़िन्दगी।
पथरीले रास्तों से ज्यादा,
किस्मत चुभ रही है,
तिनका तिनका यंहा ज़िन्दगी घुट रही है।।

बडी मुमकिन सी नही लगती,
तुम्हारी मखमली बातें,
उनमे तुमने फिक्र को चाशनी में लपेट दिया है,
उसमे तुम्हारा फिक्र करना,
सिर्फ तुम्हारा बड़प्पन दिखाता है,
और वक़्त जब करने का आता है,
तो कतरा कतरा सब बिखर जाता है।।

लगता यूँ हैं,
की मैं किसी पुराने बिछोने सा पड़ा हुआ हूँ,
जिसको वक़्त आने पर,
तुम सियासती कालीन बना लोगे,
और मैं किसी घुन सा पिसता चला जाऊंगा।
अभी मेरी घुटन तुमको पता नही चलती,
और यही विडंबना की चुभन है।

बंद दरवाजे के पीछे,
तिनका तिनका घुट रही है ज़िन्दगी,
इश्तहारों में कहते हो,
की सिमट के बच रही है ज़िन्दगी।

© जयेन्द्र दुबे

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