मैं तुम्हारा अपना नही
हो सकता है की मेरे सपने तुम्हारे लिए कोई मतलब न रखते हों,
ये भी मुमकिन है की मेरी बातों का,
तुम्हारी सच्चाई से,
कोई ताल्लुक न हो,
क्योंकि मैं तुम्हारा हो के भी तुम्हारा अपना नही,
नसों में दौड़ता खून शायद अलग कहानी कहता हो,
पर ये तुम भी जानते हो, की मैं तुम्हारा अपना नही।
ढली दुपहरी, या उतरती शाम में,
यूँ मेरा ज़िक्र होना,
किसी किस्से की याद नही,
बल्कि मेरी ज़िन्दगी को तौलती तुम्हारे दिन का खोखलापन है,
क्योंकि ये तुम भी जानते हो मैं तुम्हारा अपना नही।
मेरा अपनी हकीकत के साथ मशगूल होना,
या अपने लिखे पन्नो के बोझ में दबा होना,
तुम्हारे संघर्ष का हिस्सा नही,
ये तुम भी जानते हो,
की मैं तुम्हारे पाखंड से कोसो दूर का मुसाफिर हूँ,
पर फिर भी तुम्हारा घड़ी बेघडी मेरे से यूँ जुड़ना,
तुम्हारी सामाजिक श्रेष्टता की भूख है,
मैं इस भूख का हिस्सा नही,
क्योंकि तुम ये जानते हो मैं तुम्हारा अपना नही...!!!
अपने गैरों की पहचान,
किसी किताब की परिभाषा तो नही,
तुम्हारा, मुझको, खुदके झूठ का किरदार बनाना,
तुम्हारी जरूरत है,
यूँ बेखबर हो कर सच से,
खुद को खुदा बनाना तुम्हारी प्यास है,
मैं उस प्यास का हिस्सा नही,
क्योंकि ये तुम भी जानते हो,
मैं तुम्हारा अपना नही।।।
© Jayendra Dubey.
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