होगा कुछ यूं


होगा कुछ यूँ,
की तिनका तिनका करके,
जितने सपने संजोये थे,
सब बिखर जाएंगे,
लोग आएंगे, 
सांत्वना देंगें,
और हमारे बारे में वो बात कह के जाएँगे,
जो हमने खुद से नही कही,
होगा कुछ यूँ,
की हमारे झूठ के पत्थर,
वचनों की दीवार को ढाह देंगें,
और किसी दिन की अच्छी याद को,
कोस के हम, 
अपने किनारे पकड़ के नए सफर पे निकल जाएंगे।

होगा कुछ यूँ,
तुम भी वो ना रहोगी, 
न मैं वो रहूंगा,
एक दूसरे को पहचानने के लिए, 
तस्वीरें भी कम पड़ेगी,
मैं शायद तब भी सोचूंगा तुम्हे सुबह शाम,
पर तमाम इन किस्सों को जेहेन में ज़िंदा रख के,
एक रात और सन्नाटे में निकाल लूंगा,
क्योंकि थक चुका हूँ मैं तुम्हे लिखते लिखते,
तो होगा कुछ यूँ,
की बटे रास्ते की मंज़िलों पे निकल लेंगे,
और एक मुसाफिर की तरह भुला के,
नए कारवां से जुड़ लेंगे।।

© Jayendra Dubey.

Comments

Very beautiful thought nD lines...superb writing Jayendra Dubey ji

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