सड़क

आपने सड़क देखी है साहब
पता नहीं किस ओर बढ़ती जा रही है
किन किन जगहों से निकलती है
कंही धूप में गर्म
कंही तूफानों से टूटी हुई
पड़ी हुई है,
सैकड़ो क़दमो के निशाँ लिए हुए
कंही पान की पीक से लाल
कंही बरगद की छाओं से काली
बढ़ती जा रही है।।।

कंही रुक भी गयी है,
जिस जगह अब कोई नहीं जाता,
शहरो की तरफ बढ़ गए हैं सब,
तेज़ क़दमो के साथ, सड़क को रौंदते हुए,
अपनी परछाइयों को घरों में छोड कर,
वो परछाईयाँ जो आज भी एक सिरा पकडे हुए हैं,
सड़क का।।

जाते जाते कुछ आधी टूटी मटकियां भी छोड़ गए हैं,
जिनके टुकड़े, सड़क के सिरहाने अब, परिंदों की प्यास भुजाते हैं,
उसमे बरसात में पानी इखट्टा हो जाता है,
मिट्टी की महक अब भी बिखरती है,
सड़क के इर्दगिर्द,
पर वो सड़क तक नहीं पहुचती,
रुक जाती है, शहर के कंक्रीट से कोसो दूर पहले,
सड़क से उलझ कर।

बड़ा अज़ीब किस्सा है इस सड़क का,
हर जगह मौजूद है,
अलग अलग मिज़ाज में,
जैसे की बनाने वाले ने रूह कैद कर दी हो उनकी, जो मंज़िलो तक न पहुचे,
और जो पहुच गए उनको सड़क की क्या चिंता साहब ,
वो आज भी पड़ी हुई है ज़मीन पर,
और क़दमो से दबने के लिए।।।

आपने सड़क देखी है साहब?

© Jayendra Dubey, 2016


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