स्थिरता

Lansdowne, October 2021

 बड़ा अजीब होता है जब शोर का कानो में चुभना बंद हो जाए, 

और अंदर की बेचैनी ओढ़ ले शख्शियत को,

खड़ा इंसान भी किसी ज़िंदा लाश सा लगता है,

और बेसुध पड़ा किसी सड़ते लट्ठे की तरह,

बू का पता नही चलता,

और हलक की आवाज़ लगती है सर्द थपेड़े की तरह,

जिसकी सारी गरमाहट दिन के उजाले निगल गए हों,

बड़ा अजीब होता है जब ख़ामोशी का ठीकाना स्थिर हो जाए।।

© जयेन्द्र दुबे

Comments

Anonymous said…
🙏🙏

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