खिड़की

इस खिड़की से झांक कर देखूं,

तो अपने मे मसरूफ सा एक शहर दिखता है,

ढेरों छोटी खिड़किया दिखती है,

दिखती हैं सैकड़ो उम्मीदें,

दिखती हैं उनके सिरहाने रखी आदतें,

रोशनी का सैलाब,

झिल्लड़ सी ज़िन्दगियाँ,

अपने ही गांठो में उलझी,

इस खिड़की से बाहर एक अपना सा शहर दिखता है,

कई बंद खिड़कियों के साथ,

अपने मे मसरूफ सा एक शहर दिखता है!

© जयेंद्र दुबे

Comments

Popular Posts