कोशिश
मैं जानता हूँ,
की मैं तुम्हारी पसंद से मिलों दूर खड़ा हूँ,
पर क्या हम फिर वही इश्क़ दुबारा नही लिख सकते,
कागजों पे लकीरें खींचने से पहले,
हम किसी बरसात के रोज़,
किसी छज्जे के नीचे,
दो कुल्हड़ चाय के साथ,
फिर वही जज़्बात लिखते,
जिससे ये कहानी शुरू हुई थी।
मैं जनता हूँ अब ये मुश्किल है,
उतरे कैलेंडर के साथ,
धूल अब ढाई कदम के इश्क़ पे चढ़ गयी है,
जिसे हम कितना पोछ लें,
वो बेमानी से ही लगेगा,
पर क्या कोशिश भी नही हो सकती,
फिर एक बार हाथ थाम के,
दोपहर संग गुज़ारने की,
मुझे पता है,
मुझसे पहले मेरे शब्दों से तुम्हारा रिश्ता टूटा था,
पर क्या फिर एक कोशिश नही हो सकती,
इसमे खुद को ढूंढने की,
मैं जानता हूँ मैं तुमसे मिलों दूर खड़ा हूँ।।।
©Jayendra Dubey
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