शिकायतें

अपनी सारी शिकायतें मेरे पास दर्ज कर दो,
हर्फ़ दर हर्फ़, मैं उन्हें पढ़ता जाऊंगा,
सोचूँगा ज़रूर की आखिर, 
एक शक़्स से कितनी शिकायतें हो सकती हैं,
कितने जले बासी किस्से,
हो सकती हैं उन शिकायतों का हिस्सा।

तुम कहती रहना, मैं सब सुन लूंगा,
बटोर लूंगा एक ऐशट्रे की तरह सारी राख, 
सारे बासी अधूरे किस्से,
टूटी सिगरेट के जैसे,
रख लूंगा कमीज़ की ऊपरी जेब में, 
और ज़रूरत पड़ने पे खत्म कर दूंगा,
एक इंसान होने की पहचान, 
और एक शिकायत की डायरी बन,
पड़ा रहूंगा मेज़ के कोने पे,
कभी कभी कुरेद लूंगा अपनी जरूरतें अपने ही ज़ेहन में,
क्योंकि तुम्हारी शिकायतों की डायरी अपनी ही बातों से भरी लगती हैं।।

©Jayendra Dubey.

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