चेहरा


आईने में भी अब खुद को धुंधला दिखता है,
कैसा है ये चेहरा,
जो सब दाग लिए,
हर शक़्स की शिकायत सुनता है।।

अपनो में भी तिरस्कृत दिखता है,
काले घेरों से लिपटा हुआ,
रोशनी में भी दबा हुआ,
कैसा रंग है ये गेहुआँ,
जो हर भेद को झेलता है।

कई विज्ञापनों की हंसी में उड़ता हुआ,
कभी बेसन कभी हल्दी,
जाने कितने लेपों से दबा हुआ,
कैसा है ये चेहरा जो तराजू में टंगा दिखता है।।

पहचान का दरवाजा बन खड़ा,
कैसा है ये चेहरा,
जो कटघरे में खड़ा दिखता है,
दलील दर दलील,
अपने ही रंग का मुज़रिम,
जाने कितनी सजा सुनता है,
अब आईने में भी अब खुद को धुंधला दिखता है,
कैसा है ये चेहरा,
जो सब दाग लिए,
हर शक़्स की शिकायत सुनता है।।

©Jayendra Dubey.

Comments

Popular Posts