स्‍वतंत्रता और स्वछंदता


शायद तुम सही हो,
क्योंकि तुम्हारी आंखों पे पड़ा पर्दा,
मखमली है, तुम्हारे अपने विकल्पों से बना हुआ ।।

ये जो तुमने आडम्बर ओढा हुआ है,
तुम्हारे खुद का सिया हुआ है,
सिया हुआ है, 
इंकार से, अहंकार से, और
खुद के पसंद की प्रतिबिंब से।।।

शायद तुम सही हो,
ये व्यक्तित्व तुम्हारा,
तुम्हारी अपनी ख्वाहिश, अपनी आज़ादी, का आईना है।।
आईना है तुम्हारी बेपरवाह स्वछंदता का ।।

शर्म ने अपनी परिभाषा आत्मविश्वास के पीछे छुपा ली है,
और छिपी है मेरी चिन्ता तुम्हारी आधुनिकता के पीछे।।

शायद तुम सही हो, 
तुम्हारा हर झूठ, हर किस्सा, हर कहानी,
सब सच है,
झूठी है तो सिर्फ वो चिंता,
जिसने कल रात, 
तकिये पे बेचैनियों की करवट की सिलवटें छोड़ी हैं।।

शायद तुम्ही सही हो।।।

© Jayendra Dubey.

Comments

Prakarsha said…
So TRUE..
Everyone demands acceptance of his/her own terms.Originality is independence, not rebellion, it is sincerity, not antagonism. But it's hard to make others understand it.

Popular Posts