इश्क़ (V)
कभी जो भीड़ से गुज़रेंगे
तो क्या नज़रअंदाज़ कर देंगे
उस सफ़र को जो बीच में अधूरा रह गया ?
अधूरी रह गयीं तो जो मुलाक़ातें
क्या उनको अंजाम मिलेगा?
या किसी अधूरे वादे को कोस
खो जाएंगे भीड़ में फिर से किसी अजनबी की तरह।।।
कभी किसी महफ़िल में शिरकत लेंगें
तो क्या एक दूसरे के अदब में झुकेंगे
या फिर किसी बेगाने की तरह
झूठी मुस्कान दे के
मशगूल हो जाएंगे उनके साथ जो कभी पराये थे।।।
दोस्ती का नाम दे के
दफना देंगे मोहब्बत की चिंगारी को,
या फिर अजनबी समझ कर भूल जाएंगे
वो समंदर किनारे बैठे की हुई बातों को?
क्या गहरी लंबी सांस भर के भूल जाएंगे
उस बरसती चाँदनी को
जिसने कभी बदन भी टटोले थे?
कभी जो भीड़ से गुज़रेंगे
तो क्या झुका लेंगे नज़रो को?
© Jayendra Dubey, 2017
Comments
Ek Nazm is per yaad aati hai..
" Wo k khushbu ki tarah faila tha mere chaar soon,
Main usee mehsoos kar sakta tha chhu sakta na tha,
Faasle aise bhi honge ye kabhi Socha na tha..."