पहेली

Pic credit - @fridacastelli

          चलो इस खामोशी में एक दूसरे को बुन लें,
तुम मुझमे समायी रहो,
और मैं तुम्हारी आंखों में क़ैद सारे सपने पढ़ लूं,
लफ्ज़ होठों से झड़ न पाए,
औऱ काँधे को तुम्हारे मैं चुम लूं,
तुम टूट के मुझमे बिखर जाओ,
और मैं हर एक बार तुम्हे जोड़, 
फिर से पहेली खड़ी कर दूँ...
पहेली जो तुम से शुरू हुई,
पहेली जो तुमसी दिखती है,
पहेली जो जगमगाई सी इन रातों में,
पूछती है मुझसे की आखिर हमारा रिश्ता क्या है,
इस चारदीवारी में क़ैद हमारे ज़िस्म,
किसी परिभाषा से आज़ाद कैसे हैं,
शायद ये सारे सवालों के जवाब तुम्हारे होठों पे रखे ही मिल जाएं,
औऱ तुम्हारा यूँ बेफिक्री से मेरे जिस्म पे पड़े रहना,
दूर कर दे हर उस सवाल, हर उस पहेली को,
जो मुझे तुमसे दूर करे,
चलो दरकिनार कर इन सब रस्मों रिवाजों को,
हम एक दूसरे को खुद से बुन लें।

© जयेन्द्र दुबे।



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