वज़ूद
अगर मैं तुमको यकीन दिला पाऊँ,
तो तुम समझना,
की मेरी बदली हकीकत का दुख,
मुझे तुमसे ज्यादा है।।
तुमने मुझसे सिर्फ अपने सपने खोये हैं,
मैंने खुद का वजूद,
खुद पर का वो यकीन,
जिसे रोज़ बाहों सा चढ़ा के,
मैं घंटो किताबों में खोया रहता था।।
अगर मैं तुमको यकीन दिला पाऊँ,
तो तुम समझना,
की अब मुझे, उठने-चलने-सुलझने में,
बहुत समय लगता है,
शायद तुम इस अपने बोझ सा न समझो,
पर यकीन दिला पाऊँ तो समझना,
की इस बोझ के नीचे मैं कब का दम तोड़ चुका हूँ।
तुम शायद फिर से नए सपने देख लो,
पर मुझे अभी भी उन सपनों को और ढोना है,
क्योंकि शायद मैं तभी तुमको समझा पाऊँ,
की हर सपना पूरा होना जरूरी नही होता।।।
© Jayendra Dubey.
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