बस यूं ही


मेरी ख्वाहिशों में कुछ तो बोझ होगा,
की उन्हें पूरी करने की कीमत, 
ना सिर्फ नींद बल्कि रिश्ते भी हैं।

कुछ कमियां सिर्फ ज़िद में ही नही,
मेरी कोशिशों में भी होँगी,
की सपने में खो कर,
हक़ीक़त की ज़मीन खोखली कर दी,
कमज़ोर कर दी हर वो नींव,
जिसपे वज़ूद खड़ा था।

चलते चलते, मैं ही पीछे छूट गया हूँगा सबसे,
मैं ही रह गया हूँगा वक़्त को ताकते,
शायद मेरे ही सज़दे थे कमज़ोर,
वरना देखा था कितनो की ख्वाहिशो को बसते हुए।।

मेरी बातों में, मेरे लफ्जों में,
कुछ तो अधूरापन होगा,
की उनपे ग़ौर करने क़ीमत,
न सिर्फ परिस्थितियॉं, बल्कि ख़ुद्दारी भी है।।

© Jayendra Dubey.

Comments

Prakarsha said…
Nice one... "Khvahishen" bole to desires are supposed to be costly.. That is why Ghalib has said

hazaron khvahishen aisi ki har khvahish pe dam nikle
bahut nikle mere armaan lekin phir bhi kam nikle

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