एक हमसफ़र की तलाश - II
गर थाम ले कोई गिरते वक़्त,
तो अच्छा लगता.
क्यूंकि वक़्त लगता है समझने में ,
की गम भी ज़िन्दगी का साथी है.
हिस्सा है उन पलों का,
जो सोचे नहीं थे,
हिस्सा है उन पलों का,
जो सोचे नहीं थे,
वैसे होंगे,
की जिसमे टूट जाएंगे.
कोई थाम ले गर हाथ,
टूटते वक़्त,
तो अच्छा लगता.
बिखरी अँधेरे में कोई,
जला देता कोई उम्मीद के दीये
तो अच्छा लगता.
अच्छा लगता की कोई है,
जो साथ साये सा चल रहा है.
सुन रहा है उन नज़्मों को जो पन्नों पे ही रह गयीं,
क्यूंकि वो बेजान थी.
जो साथ साये सा चल रहा है.
सुन रहा है उन नज़्मों को जो पन्नों पे ही रह गयीं,
क्यूंकि वो बेजान थी.
गर कहता कोई,
की सजा लो मोहब्बत के अफ़साने इनमे,
तो अच्छा लगता .
की सजा लो मोहब्बत के अफ़साने इनमे,
तो अच्छा लगता .
गर कहता कोई,
की कोई नहीं,
फिर खड़े होंगे वक़्त का सहारा लेकर,
तो अच्छा लगता.
की कोई नहीं,
फिर खड़े होंगे वक़्त का सहारा लेकर,
तो अच्छा लगता.
गर थाम ले कोई बिखरते वक़्त
तो सिमटने में वक़्त न लगता.
तो सिमटने में वक़्त न लगता.
गर थाम ले कोई गिरते वक़्त,
तो अच्छा लगता.
© जयेन्द्र दुबे
Comments