अधूरे ख़याल
वैसे तो टाइटल में "अधूरा" है पर मुझको ऐसा लगता है कि जो पोस्ट शेयर कर रहा हूँ वो अपने मे बेहद मुक़म्मल है।।
कई बार ऐसी छोटी रचनाएँ लिख के इधर उधर छोड़ देता हूँ, इस बार की दीवाली की सफ़ाई में सोचा कि चलो अपने नोट्स की भी सफाई कर दी जाए और सफाई में धीरे धीरे वो ख़याल मिलते गए जो बुन के छोड़ दिये थे कि वक़्त के मुनासिब निकल लूंगा। तो फिलहाल ये तीन शेयर कर रहा हूँ बाकी किसी और पोस्ट में शेयर कर दूंगा।।।
© जयेन्द्र दुबे
1. किससे बताए गम-ए-दिल,
हर शक्श यहां कोई न कोई मर्ज लिए मिलता है!!!
2. ख्वाहिशों के चौराहे पे लग रही रिश्तों की बोलियां,
कम दाम में बेच कर आप भी आधुनिक हो जाइए जनाब,
वरना चकाचोंध की दुनिया में कोई
आपको भोजिल न समझ ले।।।।
3) गिना के मेरी कमियां साहब लोगों ने आइने लौटा दिए।
4)ऐसा क्यों है कि,
कोशिशों में उदासी है।
बातों में ठहराव,
सीने में भारीपन,
क्यों है।
किसीको पीछे करना है,
की खुद आगे बढ़ना है,
औऱ आगे बढ़ने की परिभाषा किसकी है?
किसकी बातों का हिस्सा बन कर
आज मन उदास है।
आज क्यों अपने को तराजू में रख,
दूसरे के वजन से तोल रहे हो,
खुद को।
ऐसा क्यों है की
अगर तुम्हारे सपने सबके अपने हैं
तो संघर्ष में एकाकी क्यों?
जीत तुम्हारी,
हार तुम्हारी,
हर कोशिश में लगी ताकत तुम्हारी,
रुको, दो पल को,
सांस लो,
अपनी हार को अपना के गलती ठीक करो,
तुम्हारा ईश्वर तुम्हारे साथ है!!
© जयेन्द्र दुबे।
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