एहसास
अभी मुझे तुमको देने को कुछ नही है,
सिवाय दर्द और तकलीफ के,
क्योंकि मेरे एहसास कुछ दकियानूसी ख़यालों से बने हुए हैं।
बुने हुए हैं उन धागों से जो रेशमी बिल्कुल नही हैं,
बने हैं जमाने की हक़ीक़त से,
जिसमे धिक्कार है,
और उस हक़ीक़त से,
जिसमे तुम्हारा मखमली जिस्म राख हो जाएगा।
तुमको अभी चमक की तलाश है,
रोशनी की नही,
और मेरे स्याही से हर्फ़ दर हर्फ़,
निकल रहे हैं तो सिर्फ वो शब्द,
जो तुम्हारे कानो को चोट पहुचाएंगे।
अभी मुझे तुमको देने को कुछ नही है!
© Jayendra Dubey, 2017.
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