शिकायतें
खत्म होने के बाद,
आखिर कितना खत्म होता है?
क्या जले कागज़ के साथ,
धुआं हो जाते हैं वो सपने,
जो कोसो दूर बैठे देखे थे?
बिना अल्फ़ाज़ों की परवाह किये,
जो शरारतें सजायीं थी कागज़ पे,
क्या धुआं हो जाती हैं वो भी?
ये शिकायतें कम्बखत बड़ी अज़ीब होती हैं,
बिन कुछ किये भी अक्सर रिश्तों में आ जाती हैं।।
© Jayendra Dubey, 2017



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