समग्रता

धरती पे हल चलाना मुकद्दर ही नहीं पसंद है मेरी,
अपनी अवसरवादिता बीच में ला,
इन खेतों पे लकीरें क्यों खीचते हो,
अपने स्वार्थ में मुझे नयी पहचान क्यों देते हो?





सफ़ेद पन्नो पे नीली-काली स्याही से लिखना, आत्म-निर्भर बनना,
ख्वाहिश है हमारी 
क्यों इन सपनो को अपने मंसूबों के अलग अलग चोगे पहनाते हो?

हमारी उमीदें - हमारी उड़ाने
हमे खुद संजोने दो!!!!!








रोटी मेरी जरुरत है; अमन मेरी आशा,
नौकरी के बहाने दे,
क्यों मेरी थाली में दूसरे का सुख परोसते हो?
पाबन्दी लगनी है तो गैरो पे लगाओ
आखिर अपने ही बाशिंदों को गैर क्यों बनाते हो?



मेरी आबरू मेरी पहचान है,
चंद सियासती खेलों के लिए
क्यों इन्हे बदनाम करते हो,
ये मुल्क और मेरी इज्जत एक दूजे के पर्याय हैं
मतलबी बन, क्यों अपने फायदे के लिए इन्हे शर्मसार करते हो?




चाहते हो सुख खुद का और हमारी मजबूरियों के चलते हमे बाटते हो. 
हमारी समझ को धूमिल कर खुद को मसीहा समझते हो...
बेगैरत हो खुद और हमारी परेशानियों को बढ़ा - उनका बोझ हमपे मढ़ते हो!!!

हम एक हैं,
हमारी जरूरते एक हैं,
क्यों इन्हे धर्म, जात का नक़ाब पहनते हो?
ये समाज हम हैं, यंहा के रिवाज भी हम हैं...
हिंदी है हम-वतन हैं, हमे एक साथ रहने दो!! 






Copyright,  © Jayendra Dubey,  2014

Comments

Unknown said…
wow betu... kya baat kahi hai...
isse hi rajneet kehte hai.. apne fayde k liye logo ko bant kr aage badhna..
itni aasani se jawab nhi mil sakta iska..
Since we are gullible and politicians take advantage of this!!

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