मंथन



मैने रंग बदलते देखे है,
किरदार बदलते देखें हैं,
रुकी जिंदगी में लोगों की,
कैलेंडर बदलते देखें हैं।।
सच झूठ बदलते देखें हैं, 
बुझे चिराग़ों से लिपटते,
परवाने भी देखें हैं।।
गंदे शीशे में खुद को,
अपना अक्स भूलता देखा है,
हर रोज बजारों में मैने,
रिश्ता बिकता भी देखा है, 
गई देर बहुत, 
रातों को,
मैने अपना सपना मरता देखा है।।
लिख ले मुहब्बत बेशक दुनिया,
पर मैने कई अफसाने मरते देखें हैं, 
मैने रंग बदलते देखे है,
किरदार बदलते देखें हैं।।

© Jayendra Dubey

Comments

indu chhibber said…
Very well expressed and so very true.

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