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कॉफ़ी

एक कप कॉफ़ी की तलब है, किसी अनजान शहर में, जहां कोई ना पहचाने, जहां ख़ुद के भीतर कोई धारणा ना हो, जहां से लौटना आसान लगे  जहां ये लोगो का शोर सिर्फ़ कानों तक ही टकराये।  एक कप कॉफ़ी की तलब है, किसी अनजान शहर में। जहां राहों की भटकन, गलियों की छाव, सब बेईमानी लगे, जहाँ समय की रफ़्तार हो धीमी, और हर चुभने वाली आँच धीमी।   एक कप कॉफ़ी के साथ, जहां बैठूँ तो उम्मीद हो  एक नयी मुलाक़ात की, एक नयी बरसात की, जहां से मैं उठूँ तो, कोई रोके ना, बस जाने दे, एक नये सफ़र की ओर।  © Jayendra Dubey- 2024

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