अधूरे ख़याल 2



सपनो को ओढ़ते ओढ़ते,
एक अरसा सा हो गया.
कल तलक जो संग सफर में था,
जाने कंहा खो गया.
मुट्ठी भर रौशनी थी,
जाने कंहा बिखर गयी,
कई किस्से कई कहानियां,
बस याद बन के रह गयी
उन यादों का भी आना जाना कम हो गया,
जब से मेरी नींद का हिस्सा मेरा गम हो गया…!!! 

© जयेन्द्र दुबे


 © जयेन्द्र दुबे

Comments

It touches my heart...
Very beautiful creation...
Jayendra Dubey said…
Thanks bro. Your words your appreciation motivates me.

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