इश्क़ (VI)


आखिर ऐसा क्या कहा होगा,
उस शक़्स को उसने,
की वो देर तलक आसमां को ताकता रहा।
किसलिए वो कमरे में क़ैद हो गया,
परछाई की तरह।

क्या रात की चांदनी भी चुभ रही है उसे
जो पर्दे बंद कर लिए हैं उसने,
दिल में छुपे दर्द की तरह।

दीवार पे टँगा कैलेंडर,
बाहर के मौसम का हाल नहीं बताता,
लगता है कि उसने दिन गिनने भी बंद कर दिए हैं।

ये बारिश क्या क्या नहीं ला रही साथ अपने।
बरसो पुरानी बातें,
जो कल की बात सी हों,
बूंदों की खिड़की पे दस्तक,
जैसे की जाने की आहट सी हो।

सौंधी महक जो बिखरी हुई है,
याद दिलाती हो उन वादों की,
जो जाने वाला अपने पीछे छोड़ गया।

आखिर ऐसा क्या कहा होगा,
जिसने उसको ज़िंदा रख के भी,
दफ़न कर दिया।

© Jayendra Dubey.



Comments

Jyoti Dube said…
So Sad.. what happen..
Jayendra Dubey said…
Sadness is good for health :-P
Nice poetry...really superb job sir..
Big fan of urs poetry..

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